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Mock Test: Mock Test 1 (Hindi Language)

Full Marks: 30

Time Duration: 30 minutes

Time Remaining:

(1.) पाठ्यक्रम कैसा होना चाहिए?
(2.) 'सुनना' -कौशल के बारे में कौन-सा कथन उचित नहीं है?
(3.) निम्न में से शिक्षण प्रतिमान के/का तत्त्व ___________ है।
(4.) देखो और लिखो शिक्षण विधि प्रयुक्त करते हैं?
(5.) उद्देश्य, जिनका संबंध हमारे ज्ञान के पुनः स्मरण पहचान, बौद्धिक क्षमता एवं कौशल विकास से है,
(6.) उच्च प्राथमिक स्तर पर भाषा शिक्षण का मुख्य उद्देश्य निम्न में से क्या है?
(7.) निम्न में से व्याख्यान विधि में केंद्र बिंदु क्या होता है?
(8.) निम्न में से शिक्षण प्रक्रिया में मूल्यांकन _______________ के लिए आवश्यक है।
(9.) जब भाषा के अंतर्गत इसके कई अलग-अलग रूप विकसित हो जाते हैं, तो उन्हें कहते हैं
(10.) छह वर्षीया तूलिका बातचीत करते समय कभी-कभी अपनी मातृभाषा के शब्दों का प्रयोग करती है। वह किस ओर संकेत करता है?
(11.) समावेशी शिक्षा के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?
(12.) 'कर्मधारय' और 'द्विगु' समास आते हैं:
(13.) जिस विद्या द्वारा भाषा के शब्दों, उनके रूपों, प्रयोगों आदि का ज्ञान होता है- वह है :
(14.) श्यामपट्ट को शिक्षण सामग्री के किस समूह के अंतर्गत शामिल किता जा सकता है-
(15.) संबंध प्रतिक्रिया सिद्धांत का आधार है-
(16.) Passage:
निर्देशः काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती- गाती बयार चली,
दरवाजे खिड़कियाँ खुलने लगी गली गली।
पाहुन ज्यों आए हो, गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे, गरदन अचकाए,
आँधी चली धूलभागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
बरस बाद सुधि लीन्हीं -
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाय ताल हवाया, पानी परात भर के।
मेघ आर बड़े बन ठन के संवर के।।

प्रश्‍न: किस ऋतु के आगमन पर आसमान में मेघ सजधज कर उपस्थित हो जाते हैं-
(17.) Passage:
निर्देशः काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती- गाती बयार चली,
दरवाजे खिड़कियाँ खुलने लगी गली गली।
पाहुन ज्यों आए हो, गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे, गरदन अचकाए,
आँधी चली धूलभागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
बरस बाद सुधि लीन्हीं -
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाय ताल हवाया, पानी परात भर के।
मेघ आर बड़े बन ठन के संवर के।।

प्रश्‍न: बादलों के आगे-आगे खुशी से गीत गाती हुई कौन चलने लगी?
(18.) Passage:
निर्देशः काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती- गाती बयार चली,
दरवाजे खिड़कियाँ खुलने लगी गली गली।
पाहुन ज्यों आए हो, गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे, गरदन अचकाए,
आँधी चली धूलभागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
बरस बाद सुधि लीन्हीं -
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाय ताल हवाया, पानी परात भर के।
मेघ आर बड़े बन ठन के संवर के।।

प्रश्‍न: बारिश के बादलों के आगमन पर उनका अभिवादन करने के लिए कौन आगे बढ़ा -
(19.) Passage:
निर्देशः काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती- गाती बयार चली,
दरवाजे खिड़कियाँ खुलने लगी गली गली।
पाहुन ज्यों आए हो, गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे, गरदन अचकाए,
आँधी चली धूलभागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
बरस बाद सुधि लीन्हीं -
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाय ताल हवाया, पानी परात भर के।
मेघ आर बड़े बन ठन के संवर के।।

प्रश्‍न: "जुहार" से कवि का आशय है --
(20.) Passage:
निर्देशः काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती- गाती बयार चली,
दरवाजे खिड़कियाँ खुलने लगी गली गली।
पाहुन ज्यों आए हो, गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे, गरदन अचकाए,
आँधी चली धूलभागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
बरस बाद सुधि लीन्हीं -
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाय ताल हवाया, पानी परात भर के।
मेघ आर बड़े बन ठन के संवर के।।

प्रश्‍न: प्रस्तुत कविता में पेड़ किसका प्रतीक है?
(21.) Passage:
निर्देशः काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती- गाती बयार चली,
दरवाजे खिड़कियाँ खुलने लगी गली गली।
पाहुन ज्यों आए हो, गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे, गरदन अचकाए,
आँधी चली धूलभागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
बरस बाद सुधि लीन्हीं -
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाय ताल हवाया, पानी परात भर के।
मेघ आर बड़े बन ठन के संवर के।।

प्रश्‍न: "मेघ आए बड़े बन ठन के" में विशेषण है
(22.) Passage:
निर्देशः काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती- गाती बयार चली,
दरवाजे खिड़कियाँ खुलने लगी गली गली।
पाहुन ज्यों आए हो, गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे, गरदन अचकाए,
आँधी चली धूलभागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
बरस बाद सुधि लीन्हीं -
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाय ताल हवाया, पानी परात भर के।
मेघ आर बड़े बन ठन के संवर के।।

प्रश्‍न: "सुधि लेना" मुहावरे का अर्थ है-
(23.) Passage:
निर्देशः नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
परमहंस रामकृष्ण ने साधनापूर्वक धर्म की जो अनुभूत्ति प्राप्त की थीं, स्वामी विवेकानन्द ने उनसे व्यावहारिक सिद्धांत निकाले। देश में बौद्धिकता के साथ नास्तिकता का प्रचार बढ़ता जा रहा था, किंतु रामकृष्ण को इसकी भी चिंता नहीं थी। वस्तुतः संसार से उन्हें कोई प्रयोजन नहीं था। वे आत्मानंद की खोज में थे एवं आनंद का सबसे सुगम मार्ग उन्हें यह दिखाई पड़ा था कि अपने आप को वे काली की कृपा के भरोसे छोड़ दे। उनका सारा जीवन प्रकृति के निश्छल पुत्र का जीवन था। वे अदृश्य सत्ता के हाथ में एक ऐसा यंत्र बन गए थे जिसमे कालिमा नहीं थी, मैल नहीं था, अतएव जिसके भीतर से अदृश्य अपनी लीला का चमत्कार अनायास दिखा सकता था। बहुत दिनों से हिंदुओं का विश्वास रहा है कि हृदय के पूर्ण रूप से निर्मिल हो जाने पर, मन के स्वार्थ की सारी गंध निकल जाने पर एवं चित्त में छल की छाया भी नहीं रहने पर मनुष्य की सहज वृत्ति पूर्ण रूप से जाग्रत हो जाती है। तब धर्म की अनुभूतियों उसके भीतर, आप से आप जागने लगती हैं। रामकृष्ण के जीवन में यह सत्य साकार हो उठा था। अतएव धर्म की सारी उपलब्धियाँ उन्हें अपने आप प्राप्त हो गई। उन उपलब्धियों के प्रकाश में विवेकानन्द ने भारत और समग्र विश्व की समस्याओं पर विचार किया एवं उनके जो समाधान उन्होंने उपस्थित किए, वे असल में, रामकृष्ठ के ही दिए हुए समाधान हैं। रामकृष्णा और विवेकानन्द एक ही जीवन के दो अंश, एक ही सत्य के दो पक्ष हैं।

प्रश्‍न: रामकृष्ण परमहंस के लिए अपनी आत्मा की खोज और आनंद का सुगम मार्ग था-
(24.) Passage:
निर्देशः नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
परमहंस रामकृष्ण ने साधनापूर्वक धर्म की जो अनुभूत्ति प्राप्त की थीं, स्वामी विवेकानन्द ने उनसे व्यावहारिक सिद्धांत निकाले। देश में बौद्धिकता के साथ नास्तिकता का प्रचार बढ़ता जा रहा था, किंतु रामकृष्ण को इसकी भी चिंता नहीं थी। वस्तुतः संसार से उन्हें कोई प्रयोजन नहीं था। वे आत्मानंद की खोज में थे एवं आनंद का सबसे सुगम मार्ग उन्हें यह दिखाई पड़ा था कि अपने आप को वे काली की कृपा के भरोसे छोड़ दे। उनका सारा जीवन प्रकृति के निश्छल पुत्र का जीवन था। वे अदृश्य सत्ता के हाथ में एक ऐसा यंत्र बन गए थे जिसमे कालिमा नहीं थी, मैल नहीं था, अतएव जिसके भीतर से अदृश्य अपनी लीला का चमत्कार अनायास दिखा सकता था। बहुत दिनों से हिंदुओं का विश्वास रहा है कि हृदय के पूर्ण रूप से निर्मिल हो जाने पर, मन के स्वार्थ की सारी गंध निकल जाने पर एवं चित्त में छल की छाया भी नहीं रहने पर मनुष्य की सहज वृत्ति पूर्ण रूप से जाग्रत हो जाती है। तब धर्म की अनुभूतियों उसके भीतर, आप से आप जागने लगती हैं। रामकृष्ण के जीवन में यह सत्य साकार हो उठा था। अतएव धर्म की सारी उपलब्धियाँ उन्हें अपने आप प्राप्त हो गई। उन उपलब्धियों के प्रकाश में विवेकानन्द ने भारत और समग्र विश्व की समस्याओं पर विचार किया एवं उनके जो समाधान उन्होंने उपस्थित किए, वे असल में, रामकृष्ठ के ही दिए हुए समाधान हैं। रामकृष्णा और विवेकानन्द एक ही जीवन के दो अंश, एक ही सत्य के दो पक्ष हैं।

प्रश्‍न: धर्म की अनुभूतियाँ अपने आप जगने लगती है, जब-
(25.) Passage:
निर्देशः नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
परमहंस रामकृष्ण ने साधनापूर्वक धर्म की जो अनुभूत्ति प्राप्त की थीं, स्वामी विवेकानन्द ने उनसे व्यावहारिक सिद्धांत निकाले। देश में बौद्धिकता के साथ नास्तिकता का प्रचार बढ़ता जा रहा था, किंतु रामकृष्ण को इसकी भी चिंता नहीं थी। वस्तुतः संसार से उन्हें कोई प्रयोजन नहीं था। वे आत्मानंद की खोज में थे एवं आनंद का सबसे सुगम मार्ग उन्हें यह दिखाई पड़ा था कि अपने आप को वे काली की कृपा के भरोसे छोड़ दे। उनका सारा जीवन प्रकृति के निश्छल पुत्र का जीवन था। वे अदृश्य सत्ता के हाथ में एक ऐसा यंत्र बन गए थे जिसमे कालिमा नहीं थी, मैल नहीं था, अतएव जिसके भीतर से अदृश्य अपनी लीला का चमत्कार अनायास दिखा सकता था। बहुत दिनों से हिंदुओं का विश्वास रहा है कि हृदय के पूर्ण रूप से निर्मिल हो जाने पर, मन के स्वार्थ की सारी गंध निकल जाने पर एवं चित्त में छल की छाया भी नहीं रहने पर मनुष्य की सहज वृत्ति पूर्ण रूप से जाग्रत हो जाती है। तब धर्म की अनुभूतियों उसके भीतर, आप से आप जागने लगती हैं। रामकृष्ण के जीवन में यह सत्य साकार हो उठा था। अतएव धर्म की सारी उपलब्धियाँ उन्हें अपने आप प्राप्त हो गई। उन उपलब्धियों के प्रकाश में विवेकानन्द ने भारत और समग्र विश्व की समस्याओं पर विचार किया एवं उनके जो समाधान उन्होंने उपस्थित किए, वे असल में, रामकृष्ठ के ही दिए हुए समाधान हैं। रामकृष्णा और विवेकानन्द एक ही जीवन के दो अंश, एक ही सत्य के दो पक्ष हैं।

प्रश्‍न: गंधाश के अनुसार रामकृष्ण परमहंस और विवेकानन्द के संबंध में क्या सच नहीं हैं?
(26.) Passage:
निर्देशः नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
परमहंस रामकृष्ण ने साधनापूर्वक धर्म की जो अनुभूत्ति प्राप्त की थीं, स्वामी विवेकानन्द ने उनसे व्यावहारिक सिद्धांत निकाले। देश में बौद्धिकता के साथ नास्तिकता का प्रचार बढ़ता जा रहा था, किंतु रामकृष्ण को इसकी भी चिंता नहीं थी। वस्तुतः संसार से उन्हें कोई प्रयोजन नहीं था। वे आत्मानंद की खोज में थे एवं आनंद का सबसे सुगम मार्ग उन्हें यह दिखाई पड़ा था कि अपने आप को वे काली की कृपा के भरोसे छोड़ दे। उनका सारा जीवन प्रकृति के निश्छल पुत्र का जीवन था। वे अदृश्य सत्ता के हाथ में एक ऐसा यंत्र बन गए थे जिसमे कालिमा नहीं थी, मैल नहीं था, अतएव जिसके भीतर से अदृश्य अपनी लीला का चमत्कार अनायास दिखा सकता था। बहुत दिनों से हिंदुओं का विश्वास रहा है कि हृदय के पूर्ण रूप से निर्मिल हो जाने पर, मन के स्वार्थ की सारी गंध निकल जाने पर एवं चित्त में छल की छाया भी नहीं रहने पर मनुष्य की सहज वृत्ति पूर्ण रूप से जाग्रत हो जाती है। तब धर्म की अनुभूतियों उसके भीतर, आप से आप जागने लगती हैं। रामकृष्ण के जीवन में यह सत्य साकार हो उठा था। अतएव धर्म की सारी उपलब्धियाँ उन्हें अपने आप प्राप्त हो गई। उन उपलब्धियों के प्रकाश में विवेकानन्द ने भारत और समग्र विश्व की समस्याओं पर विचार किया एवं उनके जो समाधान उन्होंने उपस्थित किए, वे असल में, रामकृष्ठ के ही दिए हुए समाधान हैं। रामकृष्णा और विवेकानन्द एक ही जीवन के दो अंश, एक ही सत्य के दो पक्ष हैं।

प्रश्‍न: 'नास्तिकता' में सही प्रत्यय हैं -
(27.) Passage:
निर्देशः नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
परमहंस रामकृष्ण ने साधनापूर्वक धर्म की जो अनुभूत्ति प्राप्त की थीं, स्वामी विवेकानन्द ने उनसे व्यावहारिक सिद्धांत निकाले। देश में बौद्धिकता के साथ नास्तिकता का प्रचार बढ़ता जा रहा था, किंतु रामकृष्ण को इसकी भी चिंता नहीं थी। वस्तुतः संसार से उन्हें कोई प्रयोजन नहीं था। वे आत्मानंद की खोज में थे एवं आनंद का सबसे सुगम मार्ग उन्हें यह दिखाई पड़ा था कि अपने आप को वे काली की कृपा के भरोसे छोड़ दे। उनका सारा जीवन प्रकृति के निश्छल पुत्र का जीवन था। वे अदृश्य सत्ता के हाथ में एक ऐसा यंत्र बन गए थे जिसमे कालिमा नहीं थी, मैल नहीं था, अतएव जिसके भीतर से अदृश्य अपनी लीला का चमत्कार अनायास दिखा सकता था। बहुत दिनों से हिंदुओं का विश्वास रहा है कि हृदय के पूर्ण रूप से निर्मिल हो जाने पर, मन के स्वार्थ की सारी गंध निकल जाने पर एवं चित्त में छल की छाया भी नहीं रहने पर मनुष्य की सहज वृत्ति पूर्ण रूप से जाग्रत हो जाती है। तब धर्म की अनुभूतियों उसके भीतर, आप से आप जागने लगती हैं। रामकृष्ण के जीवन में यह सत्य साकार हो उठा था। अतएव धर्म की सारी उपलब्धियाँ उन्हें अपने आप प्राप्त हो गई। उन उपलब्धियों के प्रकाश में विवेकानन्द ने भारत और समग्र विश्व की समस्याओं पर विचार किया एवं उनके जो समाधान उन्होंने उपस्थित किए, वे असल में, रामकृष्ठ के ही दिए हुए समाधान हैं। रामकृष्णा और विवेकानन्द एक ही जीवन के दो अंश, एक ही सत्य के दो पक्ष हैं।

प्रश्‍न: 'भरोसा' शब्द का पर्यायवाची है -
(28.) Passage:
निर्देशः नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
परमहंस रामकृष्ण ने साधनापूर्वक धर्म की जो अनुभूत्ति प्राप्त की थीं, स्वामी विवेकानन्द ने उनसे व्यावहारिक सिद्धांत निकाले। देश में बौद्धिकता के साथ नास्तिकता का प्रचार बढ़ता जा रहा था, किंतु रामकृष्ण को इसकी भी चिंता नहीं थी। वस्तुतः संसार से उन्हें कोई प्रयोजन नहीं था। वे आत्मानंद की खोज में थे एवं आनंद का सबसे सुगम मार्ग उन्हें यह दिखाई पड़ा था कि अपने आप को वे काली की कृपा के भरोसे छोड़ दे। उनका सारा जीवन प्रकृति के निश्छल पुत्र का जीवन था। वे अदृश्य सत्ता के हाथ में एक ऐसा यंत्र बन गए थे जिसमे कालिमा नहीं थी, मैल नहीं था, अतएव जिसके भीतर से अदृश्य अपनी लीला का चमत्कार अनायास दिखा सकता था। बहुत दिनों से हिंदुओं का विश्वास रहा है कि हृदय के पूर्ण रूप से निर्मिल हो जाने पर, मन के स्वार्थ की सारी गंध निकल जाने पर एवं चित्त में छल की छाया भी नहीं रहने पर मनुष्य की सहज वृत्ति पूर्ण रूप से जाग्रत हो जाती है। तब धर्म की अनुभूतियों उसके भीतर, आप से आप जागने लगती हैं। रामकृष्ण के जीवन में यह सत्य साकार हो उठा था। अतएव धर्म की सारी उपलब्धियाँ उन्हें अपने आप प्राप्त हो गई। उन उपलब्धियों के प्रकाश में विवेकानन्द ने भारत और समग्र विश्व की समस्याओं पर विचार किया एवं उनके जो समाधान उन्होंने उपस्थित किए, वे असल में, रामकृष्ठ के ही दिए हुए समाधान हैं। रामकृष्णा और विवेकानन्द एक ही जीवन के दो अंश, एक ही सत्य के दो पक्ष हैं।

प्रश्‍न: 'समाधान' शब्द का विलोम है-
(29.) Passage:
निर्देशः नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
परमहंस रामकृष्ण ने साधनापूर्वक धर्म की जो अनुभूत्ति प्राप्त की थीं, स्वामी विवेकानन्द ने उनसे व्यावहारिक सिद्धांत निकाले। देश में बौद्धिकता के साथ नास्तिकता का प्रचार बढ़ता जा रहा था, किंतु रामकृष्ण को इसकी भी चिंता नहीं थी। वस्तुतः संसार से उन्हें कोई प्रयोजन नहीं था। वे आत्मानंद की खोज में थे एवं आनंद का सबसे सुगम मार्ग उन्हें यह दिखाई पड़ा था कि अपने आप को वे काली की कृपा के भरोसे छोड़ दे। उनका सारा जीवन प्रकृति के निश्छल पुत्र का जीवन था। वे अदृश्य सत्ता के हाथ में एक ऐसा यंत्र बन गए थे जिसमे कालिमा नहीं थी, मैल नहीं था, अतएव जिसके भीतर से अदृश्य अपनी लीला का चमत्कार अनायास दिखा सकता था। बहुत दिनों से हिंदुओं का विश्वास रहा है कि हृदय के पूर्ण रूप से निर्मिल हो जाने पर, मन के स्वार्थ की सारी गंध निकल जाने पर एवं चित्त में छल की छाया भी नहीं रहने पर मनुष्य की सहज वृत्ति पूर्ण रूप से जाग्रत हो जाती है। तब धर्म की अनुभूतियों उसके भीतर, आप से आप जागने लगती हैं। रामकृष्ण के जीवन में यह सत्य साकार हो उठा था। अतएव धर्म की सारी उपलब्धियाँ उन्हें अपने आप प्राप्त हो गई। उन उपलब्धियों के प्रकाश में विवेकानन्द ने भारत और समग्र विश्व की समस्याओं पर विचार किया एवं उनके जो समाधान उन्होंने उपस्थित किए, वे असल में, रामकृष्ठ के ही दिए हुए समाधान हैं। रामकृष्णा और विवेकानन्द एक ही जीवन के दो अंश, एक ही सत्य के दो पक्ष हैं।

प्रश्‍न: 'अतएव' शब्द का सही संधि-विच्छेद है-
(30.) Passage:
निर्देशः नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नो के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प का चयन कीजिए-
परमहंस रामकृष्ण ने साधनापूर्वक धर्म की जो अनुभूत्ति प्राप्त की थीं, स्वामी विवेकानन्द ने उनसे व्यावहारिक सिद्धांत निकाले। देश में बौद्धिकता के साथ नास्तिकता का प्रचार बढ़ता जा रहा था, किंतु रामकृष्ण को इसकी भी चिंता नहीं थी। वस्तुतः संसार से उन्हें कोई प्रयोजन नहीं था। वे आत्मानंद की खोज में थे एवं आनंद का सबसे सुगम मार्ग उन्हें यह दिखाई पड़ा था कि अपने आप को वे काली की कृपा के भरोसे छोड़ दे। उनका सारा जीवन प्रकृति के निश्छल पुत्र का जीवन था। वे अदृश्य सत्ता के हाथ में एक ऐसा यंत्र बन गए थे जिसमे कालिमा नहीं थी, मैल नहीं था, अतएव जिसके भीतर से अदृश्य अपनी लीला का चमत्कार अनायास दिखा सकता था। बहुत दिनों से हिंदुओं का विश्वास रहा है कि हृदय के पूर्ण रूप से निर्मिल हो जाने पर, मन के स्वार्थ की सारी गंध निकल जाने पर एवं चित्त में छल की छाया भी नहीं रहने पर मनुष्य की सहज वृत्ति पूर्ण रूप से जाग्रत हो जाती है। तब धर्म की अनुभूतियों उसके भीतर, आप से आप जागने लगती हैं। रामकृष्ण के जीवन में यह सत्य साकार हो उठा था। अतएव धर्म की सारी उपलब्धियाँ उन्हें अपने आप प्राप्त हो गई। उन उपलब्धियों के प्रकाश में विवेकानन्द ने भारत और समग्र विश्व की समस्याओं पर विचार किया एवं उनके जो समाधान उन्होंने उपस्थित किए, वे असल में, रामकृष्ठ के ही दिए हुए समाधान हैं। रामकृष्णा और विवेकानन्द एक ही जीवन के दो अंश, एक ही सत्य के दो पक्ष हैं।

प्रश्‍न: गंधाश का उपयुक्त शीर्षक होगा -

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