आजकल H-1B वीजा दुनियाभर में चर्चा का विषय है, खासकर भारतीय आईटी और टेक प्रोफेशनल्स के लिए। हाल ही में अमेरिका ने H-1B वीजा की फीस को लेकर बड़े बदलाव किए हैं, जिससे लाखों भारतीय प्रभावित होंगे। आइए जानते हैं H-1B वीजा से जुड़ी पूरी जानकारी एक नज़र में :-
H-1B एक नॉन-इमिग्रेंट वीजा है, जिसे अमेरिका उन विदेशी प्रोफेशनल्स को देता है जिनके पास टेक्निकल और स्पेशल स्किल्स हों।
यह खास तौर पर IT, कंप्यूटर साइंस, इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, हेल्थकेयर और रिसर्च जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों के लिए जारी होता है।
हर साल इसकी लॉटरी सिस्टम से 85,000 वीजा जारी किए जाते हैं क्योंकि आवेदन संख्या बहुत अधिक होती है।
फीस में हालिया बदलाव
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में आदेश पर साइन करके H-1B वीजा की एप्लिकेशन फीस को 88 लाख रुपये ($100,000) कर दिया है।
यह वन-टाइम फीस है, जो केवल नए आवेदनों पर लागू होगी।
पुराने वीजा धारकों, नवीनीकरण और 21 सितंबर 2025 से पहले अप्लाई करने वालों पर यह नियम लागू नहीं होगा।
यह फीस 12 महीने तक प्रभावी रहेगी।
व्हाइट हाउस का कहना है कि यह कदम अमेरिकियों की नौकरियां बचाने के लिए उठाया गया है, क्योंकि कई कंपनियां H-1B कर्मचारियों को कम वेतन पर रखकर अमेरिकी कर्मचारियों को निकाल रही थीं।
भारतीयों पर असर
भारत हर साल H-1B वीजा का सबसे बड़ा लाभार्थी रहा है।
2023 में 1.91 लाख भारतीयों को यह वीजा मिला था।
2024 में यह आंकड़ा बढ़कर 2.07 लाख हो गया।
नई फीस के कारण भारतीय आईटी कंपनियों (जैसे TCS, Infosys, Wipro, Cognizant, HCL) के लिए अपने कर्मचारियों को अमेरिका भेजना महंगा और कम फायदेमंद होगा। इसका असर खासकर एंट्री लेवल और मिड लेवल प्रोफेशनल्स पर पड़ेगा, क्योंकि कंपनियां इतने खर्च के बाद आउटसोर्सिंग को प्राथमिकता दे सकती हैं।
H-1B वीजा धारकों की स्थिति
मौजूदा H-1B वीजा धारक बिना अतिरिक्त फीस दिए अमेरिका में रह सकते हैं।
वे बाहर जाकर लौट भी सकते हैं।
लेकिन नई एप्लिकेशन डालने पर कंपनियों को 88 लाख रुपये देने होंगे।
इसी डर से कई टेक कंपनियों (Microsoft, Meta, Amazon) ने अपने कर्मचारियों को तुरंत अमेरिका लौटने की सलाह दी।
क्यों किया गया बदलाव? व्हाइट हाउस के अनुसार –
2003 में H-1B धारकों की हिस्सेदारी 32% थी, जो अब 65% से अधिक हो गई है।
अमेरिकी कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स में बेरोजगारी दर दोगुनी है।
कंपनियां सस्ते विदेशी कर्मचारियों को रखकर अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल रही हैं।
ट्रम्प प्रशासन का कहना है कि अब H-1B केवल उन्हीं को मिलेगा जो वास्तव में हाई-स्किल्ड और टैलेंटेड हों, ताकि अमेरिकी कर्मचारियों को रिप्लेस न किया जा सके।
कौन-कौन सी कंपनियां सबसे ज्यादा H-1B स्पॉन्सर करती हैं?
Infosys
TCS (Tata Consultancy Services)
Wipro
Cognizant
HCL
साथ ही अमेरिकी कंपनियां जैसे Amazon, Microsoft, Meta भी हर साल हजारों H-1B वीजा स्पॉन्सर करती हैं।
भविष्य की तस्वीर नई फीस से भारतीय प्रोफेशनल्स का अमेरिका जाना कठिन होगा। नतीजतन, भारतीय टैलेंट कनाडा, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और मिडिल ईस्ट की ओर रुख कर सकता है। ट्रम्प प्रशासन का कहना है – "अब अमेरिका केवल टैलेंटेड लोगों को ही वीजा देगा, न कि ऐसे लोगों को जो अमेरिकियों की नौकरियां छीनें।" निष्कर्ष H-1B वीजा लंबे समय से भारतीय टेक प्रोफेशनल्स के लिए अमेरिकी सपना रहा है। लेकिन नई फीस और सख्त नियमों ने इस सपने को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है। अब कंपनियों और उम्मीदवारों को तय करना होगा कि वे इतने भारी खर्च के बाद भी अमेरिका जाने का जोखिम उठाते हैं या अन्य देशों की ओर रुख करते हैं।
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